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Sai Baba

साईंबाबा  (जन्म:अज्ञात [2] , मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८) [3]  जिन्हें  शिरडी साईंबाबा  भी कहा जाता है, एक  भारतीय   गुरु ,  संत  एवं  फ़क़ीर  के रूप में बहुमान्य हैं। उनके अनुयायी उन्हें सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी मानते हैं।   जीवन-परिचय जन्म-तिथि एवं स्थान साईं बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ था एवं उनके माता-पिता कौन थे ये बातें अज्ञात हैं। किसी दस्तावेज से इसका प्रामाणिक पता नहीं चलता है। स्वयं शिरडी साईं ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया है। [5]  हालाँकि एक कथा के रूप में यह प्रचलित है कि एक बार श्री साईं बाबा ने अपने एक अंतरंग भक्त म्हालसापति को, जो कि बाबा के साथ ही मस्जिद तथा चावड़ी में शयन करते थे, बतलाया था कि "मेरा जन्म पाथर्डी ( पाथरी ) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मेरे माता-पिता ने मुझे बाल्यावस्था में ही एक फकीर को सौंप दिया था।" जब यह चर्चा चल रही थी तभी पाथरी से कुछ लोग वहाँ आये तथा बाबा ने उनसे कुछ लोगों के सम्बन्ध में पूछताछ भी की। [6]  उनके जन्म स्थान एवं तिथि की बात वास्तव में उनके अनुयायियों के विश्वास एवं श्रद्धा पर आधारित हैं। शिरडी साईं बाबा के अवतार माने

Raja Ravi Verma

राजा रवि वर्मा  (१८४८ - १९०६)  भारत  के विख्यात चित्रकार थे। उन्होंने  भारतीय साहित्य  और  संस्कृति  के पात्रों का चित्रण किया। उनके चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता  हिंदू   महाकाव्यों  और धर्मग्रन्थों पर बनाए गए चित्र हैं। हिन्दू मिथकों का बहुत ही प्रभावशाली इस्‍तेमाल उनके चित्रों में दिखता हैं।  वडोदरा  ( गुजरात ) स्थित  लक्ष्मीविलास महल  के संग्रहालय में उनके चित्रों का बहुत बड़ा संग्रह है। जीवन परिचय संपादित करें राजा रवि वर्मा का जन्म २९ अप्रैल १८४८ को  केरल  के एक छोटे से शहर  किलिमानूर  में हुआ। पाँच वर्ष की छोटी सी आयु में ही उन्होंने अपने घर की दीवारों को दैनिक जीवन की घटनाओं से चित्रित करना प्रारम्भ कर दिया था। उनके चाचा कलाकार राज राजा वर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और कला की प्रारम्भिक शिक्षा दी। चौदह वर्ष की आयु में वे उन्हें  तिरुवनंतपुरम  ले गये जहाँ राजमहल में उनकी  तैल चित्रण  की शिक्षा हुई। बाद में चित्रकला के विभिन्न आयामों में दक्षता के लिये उन्होंने  मैसूर ,  बड़ौदा  और देश के अन्य भागों की यात्रा की। राजा रवि वर्मा की सफलता का श्रेय उनकी सुव्यवस्थित कला शिक्षा को जा

Mangal Pandey

मंगल पाण्डेय  एक भारतीय  स्वतंत्रता सेनानी  थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 19वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। जीवन परिचय संपादित करें मंगल पाण्डेय का जन्म  भारत  में  उत्तर प्रदेश  के बलिया जिले के नगवां नामक गांव में 30 जनवरी 1831 को एक "ब्राह्मण" परिवार में हुआ था। [1]  इनके पिता का नाम सुदिष्ट पांडेय तथा माता का नाम जानकी देवी था। मंगल पाण्डेय, गिरिवर पांडेय एवं ललित पांडेय तीन भाई थे। छोटे भाइयों की संतानों में महावीर पांडेय एवं महादेव पांडेय हुए। जिसमें महावीर पांडेय के एक मात्र पुत्र बरमेश्वर पांडेय ने १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में बलिया को आजाद करा कर स्वयं कप्तान बन गए थे। मंगल पाण्डेय ब्रह्मचारी "ब्राह्मण" होने के बाद भी ब्रि

Guru Govind singh ji

गुरु गोबिन्द सिंह  (जन्म:पौष शुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 12 जनवरी 1666- मृत्यु 17 अक्टूबर 1708 )  सिखों  के  दसवें गुरु  थे। उनके पिता  गुरू तेग बहादुर  की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में  बैसाखी  के दिन उन्होने  खालसा  पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। गुरु गोबिन्द सिंह जी ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ जन्म गोबिन्द राय 12 जनवरी  ,  1666 पटना   बिहार ,  भारत मृत्यु 17 अक्टूबर 1708 (उम्र 42) नांदेड़ ,  महाराष्ट्र , भारत पदवी सिखों के दसवें गुरु प्रसिद्धि कारण दसवें सिख गुरु, सिख खालसा सेना के संस्थापक एवं प्रथम सेनापति पूर्वाधिकारी गुरु तेग बहादुर उत्तराधिकारी गुरु ग्रंथ साहिब जीवनसाथी माता जीतो , माता सुंदरी,  माता साहिब देवां बच्चे अजीत सिंह जुझार सिंह जोरावर सिंह फतेह सिंह माता-पिता गुरु तेग बहादुर ,  माता गूजरी सिख धर्म पर एक  श्रेणी  का भाग सिख  सतगुरु  एवं  भक्त सतगुरु नानक देव  ·  सतगुरु अंगद देव सतगुरु अमर दास   ·  सतगुरु राम दास  · सतगुरु अर्जन देव   · सत