Skip to main content

Kondhana



सिंहगढ़सिंहगड, (अर्थ : सिंह का दुर्ग) ,भारत [1] के महाराष्ट्र राज्य के पुणे ज़िले में स्थित एक पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित एक दुर्ग है जो पुणे से लगभग ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दुर्ग को पहले कोंढाना के नाम से भी जाना जाता था। यह दुर्ग समुदतल से लगभग ४४०० फूट ऊँचाई पर स्थित हेेै। सह्याद्री के पूर्व शाखा पर फैला भुलेश्वर की 'रांगेवर' यह दुर्ग बना है।दो सीढ़ियों जैसा दिखाई देनेवाला पहाडी सा भाग और दूरदर्शन के लिए खडा किया 'मनोरा' इस कारण पुणे से कही भी वो सबको आकर्षित करता है। पुरंदर, राजगड, तोरणा, लोहगड, विसापूर, तुंग ऐसा प्रचंड मुलुख इस दुर्ग से दिखाई देता है।

किले का पहले का नाम 'कोंढाणा' है। पूरा किला आदिलशाही में था।दादोजी कोंडदेव ये आदिलशहा की ओर से सुभेदार पद पर चुने गए। आगे इ.स. १६४७ में किलेपर अपना लष्करी केंद्र बनाया। आगे इ.स. १६४९ में शहाजी राजा को छुड़ाने के लिए शिवाजी राजा ने यह किला फिर से आदिलशह को सुपुर्द किया। पुरंदर के तह में जो किले मुगल को दिए उसमें कोंडाना किला भी था। मुगलोंकी तरफ से उदेभान राठोड यह कोंडाना का अधिकारी था। यह राजपूत था पर बाद में मुसलमान बन गया था।

शिवाजी महाराज का कालखंड में उनके विश्वास के सरदार और बालमित्र तानाजी मालुसरे और उनके मावले इस गाँव के सैनिकों ने (मावळ प्रांत से भरती हुए सैनिको का समूह) यह किला एक चढाई में जीता। इस लढाई में तानाजी को वीरमरण आया और प्राणो का बलीदान देकर किला जीता इसलिए शिवाजी महाराजा ने "गड आला पण सिंह गेला"(मतलब दुर्ग मिला पर सिंह गया) ये वाक्य उच्चारे थे । आगे उन्होंने कोंढाणा यह नाम बदलकर "सिंहगड" ऐसा नाम रखा। सिंहगड यह मुख्यतः तानाजी मालुसरे इनके बलिदान के कारण प्रसिद्ध है। सिंहगढ़ का युद्ध, देखें

तानाजी मालुसरे नाम का हजारी सैनिक का था। उसने कबूल किया कि, 'कोंडाणा अपन लेंगे', ऐसा कबूल करके वस्त्रे, पान लेकर किले के यत्नास ५०० आदमी लेकर किले के नीचे गया और दोनो सैनिक मर्दाने चुनकर रात को किले की दिवार पर चढाए। किले पर उदेभान रजपूत था। उसे पता चला कि गनिमाके लोग आए और ये खबर पता चलने पर कुल रजपूत कंबरकस्ता होकर, हाती तोहा बार लेकर, हिलाल (मशाल), चंद्रज्योती लगाकर बारासौ आदमी तोफवाले और तिरंदाज, बरचीवाले, चलकर आए, तब सैनिक लोगोने फौजपर रजपुत के भी चलकर आऐ, बडा युद्ध एक प्रहर हुआ। पाच सौ रजपूत मारे गए,उदेभान किल्लेदार खाशा की और तानाजी मालुसरा इनकी मुठभेड़ हुई। दोघे बड़े योद्धे, महशूर, एक एक से बढचढ पडे, तानाजीचे बाँए हाथ की ढाल टुटी, दूसरी ढाल समयास आई नहीं, फिर तानाजीने अपना बाँए हाथ की ढाल करके उसे खींच कर , दोनो महरागास भडके। दोनो की मौत हुई। फिर सूर्याजी मालुसरा (तानाजीचा भाई), इसने हिंमत कर के किला कुल लोग समेटते हुए बचे राजपूत मारे। किला काबीज किया। शिवाजी महाराज को दुर्ग जीतने की और तानाजी गिरने का समाचार मिला तब शिवाजी महाराज ने दुर्ग मिला पर सिंह गया एसा कहा। माघ वद्य नवमी दि. ४ फरवरी १६७२ को यह युद्ध हुआ था।

सिंहगड पर लगे फलक के अनुसार

सिंहगड का नाम कोंढाणा, इसामी नाम के कवीने फुतुह्स्सलातीन या शाहनामा-इ-हिंद इस फार्शी काव्य में (इ. १३५०) मुछ्म्द तुघलक ने इ.१६२८ में कुंधीयाना किले को लिया। उस समय यह किला नागनायक नाव के कोली के पास था। अहमदनगर के निजामशाही काल में कोंढाणा का उल्लेख इ.१४८२, १५५३, १५५४ व १५६९ के समय के हैं इ.१६३५ के लगभग कोंढाणा पर सीडी अवर किलेदार थे मोगल व आदिलशाहा इऩ्होने मिलकर कोंढाणा लिया । इस समय(इ.१६३६) आदिलशाह का खजाना डोणज्याच्या खिंड में निजाम का सरदार मुधाजी मायदे ने लुटा। शहाजी राज्य के काल में सुभेदार दादोजी कोंडदेव मालवणकर इनके संरक्षण में कोंढाणा था ऐसा उल्लेख आदिलशाही फर्मानात है। दादोजी कोंडदेव आदिलशाही के नोकर थे फिर भी वो शहाजी राजा से एक निष्ठ थे।एकनिष्ठ होने के कारण शिवाजी राजा ने मृत्यूपर्यंत (इ.१६४७) कोंढाणा लेने का प्रयत्‍न नही किया। पर उनके बाद जल्द ही राजा ने यह दुर्ग अपने कब्जे में लिया। इतिहासकार श्री.ग.ह. खरे इनके मतानुसार तानाजी प्रसंग होने के पहले कोंढाणा का नाम 'सिहगड' किया गया इसके प्रमाण है। कै.ह.ना. आपटे इनके उपन्यास में तानाजी प्रसंग के बाद किले का नाम सिंहगड किया ऐसा उल्लेख है। शिवाजी राजा के समय और उसके बाद यह किला कभी मराठो के पास तो कभी मुगलाे के अधीन था।

गडावरील ठिकाणे बारूद के कोठार: दरवाजे से अंदर आने पर जो पत्थरों की इमारत दिखती है वही ये बारूद के कोठार दि. ११ सितंबर १७५१ में इन कोठारों पर बिजली गिरी इस दुर्घटना में उस समय दुर्ग पर स्थित फडणिस का घर उद्‌ध्वस्त हुआ और घर के सभी सदस्य मारे गए। टिलक बंगला : रामलाल नंदराम नाईक इनसे खरीदी गई जगह पर बने इस बंगलें में बाल गंगाधर तिलक आते रहते थे। १९१५ साल में महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक इनकी मुलाकात इसी बंगले में हुई थी।

कोंढाणेश्वर : यह मंदिर शंकरजी का है और वे यादव के कुलदैवता थे। अंदर एक पिंडी और सांब है और यह मंदिर यादवकालीन है।

श्री अमृतेश्वर भैरव मंदिर' : कोंढाणेश्वर के मंदिर से थोडा आगे गए तो यह अमृतेश्वर का प्राचीन मंदिर लगता है। भैरव यह कोली लोगों के देवता है। यादवो के पहले इस दुर्ग पर कोली की बस्ती थी। मंदिर में भैरव व भैरवी ऐसी दो मूर्ती दिखती है। भैरव के हाथ में राक्षस की मुंडी है।

देवटाके : तानाजी स्मारक के पीछे बाँए हाथ के छोटे तालाब के बाजू से बाई ओर जाने पर यह प्रसिद्ध ऐसा देवटाके लगता है। टंकी का उपयोग पीने के पानी के लिए किया जाता है और आज भी होता है। महात्मा गांधी जब पुणे आते थे तब जानकर इस टंकी का पानी पीने के लिए मंगाते थे।

कल्याण दरवाजा : दुर्ग के पश्चिम दिशा की ओर यह दरवाजा है। कोंढण पूल पर से दुर्ग के शुरूवाती जगह से कल्याण गाव से ऊपर आने पर इस

Popular posts from this blog

🇮🇳𝐁𝐇𝐀𝐆𝐀𝐓 𝐒𝐈𝐍𝐆𝐇🇮🇳

भगत सिंह (पंजाबी उच्चारण: (1907- 23 मार्च 1931) एक भारतीय समाजवादी क्रांतिकारी थे जिनकी भारत में अंग्रेजों के खिलाफ नाटकीय हिंसा और दो साल की उम्र में फांसी की घटनाओं ने उन्हें एक लोक नायक बना दिया था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के। भगत सिंह ने दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में भाग लिया, जो आर्य समाज (आधुनिक हिंदू धर्म का सुधार संप्रदाय) द्वारा संचालित किया गया था, और फिर नेशनल कॉलेज, दोनों लाहौर में स्थित थे। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध करना शुरू कर दिया, जबकि अभी भी युवा थे और जल्द ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए लड़े। उन्होंने अमृतसर में पंजाबी और उर्दू भाषा के अखबारों में मार्क्सवादी सिद्धांतों की जासूसी करने वाले लेखक और संपादक के रूप में भी काम किया। उन्हें कैचफ्रेज़ "इंकलाब ज़िंदाबाद" ("लंबे समय तक क्रांति") को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है। 1928 में भगत सिंह ने साइमन कमीशन का विरोध करने वाले एक मौन मार्च के दौरान नेशनल कॉलेज के संस्थापकों में से एक, भारतीय लेखक और राजनेता लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार पुलिस प्रमुख को मारने ...

🇮🇳🇮🇳Chanakya🇮🇳🇮🇳

चाणक्य ,एक प्राचीन भारतीय शिक्षक, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, न्यायविद और शाही सलाहकार थे। उन्हें पारंपरिक रूप से काऊल्या या विष्णुगुप्त के रूप में पहचाना जाता है, जिन्होंने प्राचीन भारतीय राजनीतिक ग्रंथ, अर्थशास्त्र, को लगभग 3 वीं शताब्दी ईसा पूर्व और तीसरी शताब्दी ई.पू. के बीच एक पाठ के रूप में लिखा था। जैसे, उन्हें भारत में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है, और उनके काम को शास्त्रीय अर्थशास्त्र का एक महत्वपूर्ण अग्रदूत माना जाता है। उनकी रचनाएँ गुप्त साम्राज्य के अंत के करीब खो गईं और बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक फिर से खोज नहीं की गईं। चाणक्य ने सत्ता में आने के पहले मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त की सहायता की। मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए उन्हें व्यापक रूप से श्रेय दिया जाता है। चाणक्य ने दोनों सम्राटों चंद्रगुप्त और उनके बेटे बिन्दुसार के मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य किया। इतालवी राजनेता और लेखक निकोलो मैकियावेली के कई और अरस्तू और प्लेटो द्वारा दूसरों की तुलना में, चाणक्य को उनकी क्रूरता और चालबाजी के लिए बारी-बारी से...

Shree Ram

भगवान श्रीरामचन्द्र हिंदू सनातन धर्म के सबसे पूज्यनीय सबसे महानतम देव माने जाते हैं उनका व्यक्तित्व मर्यादा, नैतिकता, विनम्रता, करूणा, क्षमा, धैर्य, त्याग तथा पराक्रम का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है  ।  श्रीराम  का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि  वाल्मीकि  द्वारा रचित  संस्कृत  महाकाव्य  रामायण  के रूप में वर्णित हुआ है।श्रीराम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि  वाल्मीकि  द्वारा रचित  संस्कृत  महाकाव्य  रामायण  के रूप में वर्णित हुआ है। रामायण में सीता के खोज में श्रीलंका जाने के लिए 25 किलोमीटर पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको रामसेतु कहते हैं, वह आज भी स्थित है, जिसकी कार्बन डेंटिंग में पांच हजार वर्ष पूर्व का अनुमान लगा गया है। मान्यता अनुसार गोस्वामी  तुलसीदास  ने भी उनके जीवन पर केन्द्रित भक्तिभावपूर्ण सुप्रसिद्ध महाकाव्य  रामचरितमानस  की रचना की है। इन दोनों के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचनाएं हुई हैं, जो काफी प्रसिद्ध भी हैं। खास तौर पर उत्तर भा...