प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
राहत का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ था। इनके पिता वस्त्र कारख़ाने के कर्मचारी थें। यें अपने माता पिता के चौथे संतान थें। राहत जी की दो बड़ी बहनें थी, जिनके नाम तहज़ीब और तक़रीब थे। उनके एक बड़े भाई अकील और एक छोटे भाई आदिल हैं। परिवार की आर्थिक स्थिति बुरी होने के कारण उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। 10 साल की उम्र में ही उन्होंने साइन चित्रकारी का कार्य आरंभ किया।[3] उनकी प्रारंभिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की[4] और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया।[5] इसके बाद उन्होंने बरकतुल्ला विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की और उन्होंने 1985 में मध्य प्रदेश के भोज विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की शिक्षा पूरी की। उर्दू मुख्य मुशायरा नामक उनकी थीसिस के लिए उन्हें सम्मानित भी किया गया था।
प्रगति
राहत इंदोरी ने अपने शुरुवाती दिनों में इंद्रकुमार कॉलेज, इंदौर में उर्दू साहित्य का अध्यापन कार्य शुरू किया। आगे चलकर उन्होंने मुशायरों पर ध्यान दिया। अपनी प्रतिभा के कारण उन्हें यहां जल्दी ही ख्याति प्राप्त हुई। कुछ ही समय में वें उर्दू साहित्य के प्रसिद्ध शायर बन गए। वें खेलकूद में भी प्रवीण थे, वे स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी रह चुके थे। वह केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में अपनी पहली शायरी सुनाई थी।[
निधन
10 अगस्त 2020 को उन्हें कोरोनावायरस के लिए सकारात्मक पाया गया और उन्हें मध्य प्रदेश के इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां 11 अगस्त 2020 को उनका निधन हो गया क्योंकि उनके निधन से पहले उन्हें पूर्णहृदरोध का सामना करना पड़ा था।
- ...फकीरी पे तरस आता है अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है ...
- बहुत हसीन है दुनिया आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो ...
- मैं बच भी जाता तो... किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है ...
- अंदर का ज़हर चूम लिया अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए ...
- मोड़ होता है जवानी का सँभलने के लिए ...
- एक चिंगारी नज़र आई थी