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GURJAR SAMRAT MIHIR BHOJ




गुर्जर सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार प्रतिहार राजवंश के सबसे महान राजा माने जाते हैं। इन्होने लगभग ५० वर्ष तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था अपने पिता रामभद्र की हत्या करके मिहिरभोज ने सता संभाली ओर नागभट की तरह इसका विस्तार किया।

मिहिर भोज विष्णु भगवान के भक्त थे तथा कुछ सिक्कों मे इन्हे 'आदिवराह' भी माना गया है।

सम्राट मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला हुआ था। ये धर्म रक्षक सम्राट शिव के परम भक्त थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। 50 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तुआरीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है, साथ ही मिहिरभोज प्रतिहार की महान सेना की तारीफ भी की है, साथ ही मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बतायी है। प्रतिहार यानी रक्षक या द्वारपाल से है।

915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल- मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल महान मेें भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का निशान “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि सूअर से नफरत करते थे। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी।

मिहिर भोज के मित्र काबुल का ललिया शाही राजा कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवन्ति वर्मन तथा नैपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा थे। सम्राट मिहिरभोज के उस समय शत्रु, पालवंशी राजा देवपाल, दक्षिण का राष्ट्र कटू महाराज आमोधवर्ष और अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। सम्राट मिहिर भोज ने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायणलाल को युद्ध में परास्त करके उत्तरी बंगाल को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। दक्षिण के राष्ट्र कूट राजा अमोधवर्ष को पराजित करके उनके क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिला लिये थे। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने क्षत्रिय प्रतिहार सम्राट के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे।

सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने, इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर अपने साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पहुंचा दी, और इसी प्रकार भारत को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह सम्राट मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं काबुल से राँची व आसाम तक, हिमालय से नर्मदा नदी व आन्ध्र तक, काठियावाड़ से बंगाल तक, सुदृढ़ तथा सुरक्षित थी।


- सम्राट मिहिर भोज द्वारा चलाये गये सिक्के

अरब यात्री सुलेमान और मसूदी ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है ’जिनका नाम बराह (मिहिरभोज) है। उसके राज्य में चोर डाकू का भय कतई नहीं है। उसकी राजधानी कन्नौज भारत का प्रमुख नगर है जिसमें 7 किले और दस हजार मंदिर है। आदि बराह का (विष्णु) का अवतार माना जाता है। यह इसलाम धर्म और अरबों का सबसे बड़ा शत्रु है। मिहिर भोज अपने जीवन के पचास वर्ष युद्ध के मैदान में घोड़े की पीठ पर युद्धों में व्यस्त रहा। उसकी चार सेना थी उनमें से एक सेना कनकपाल परमार के नेतृत्व में गढ़वाल नेपाल के राघवदेव की तिब्बत के आक्रमणों से रक्षा करती थी। इसी प्रकार एक सेना अल्कान देव के नेतृत्व में पंजाब के वर्तमान गुर्जराज नगर के समीप नियुक्त थी जो काबुल के ललियाशाही राजाओं को तुर्किस्तान की तरफ से होने वाले आक्रमणों से रक्षा करती थी। इसकी पश्चिम की सेना मुलतान के मुसलमान शासक पर नियंत्रण करती थी। दक्षिण की सेना मानकि के राजा बल्हारा से तथा अन्य दो सेना दो दिशाओं में युद्धरत रहती थी।सम्राट मिहिरभेाज इन चारों सेनाओं का संचालन, मार्गदर्शन तथा नियंत्रण स्वयं करता था। अपने पूर्वज सम्राट नागभट् प्रथम की तरह सम्राट मिहिर भोज ने अपने पूर्वजों की भांति स्थायी सेना खड़ी की जोकि अरब आक्रान्ताओं से टक्कर लेने के लिए आवश्यक थी। यदि नागभट् प्रथम के पश्चात के अन्य सम्राटों ने भी स्थायी, प्रशिक्षित व कुशल तथा देश भक्त सेना न रखी होती तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता तथा भारतीय संस्कृति व सभ्यता नाम की कोई चीज बची नहीं होती। जब अरब सेनाएं सिन्ध प्रान्त पर अधिकार करने व उसको मुसलिम राष्ट्र में परिवर्तित करने के बाद समस्त भारत को मुसलिम राष्ट्र बनाने के लिए सेनापति मोहम्मद जुनेद के नेतृत्व में आगे बढ़ी, तो उन्हें सिन्ध से मिले गुर्जर प्रदेश जीतना जरुरी था। इसलिए उन्होंने भयानक आक्रमण प्रारम्भ किए।

एक तरफ अरब, सीरिया व ईराक आदि के इस्लामिक सैनिक थे, जिनका मकसद पूरी दुनिया में इस्लामी हुकूमत कायम करना था और दूसरी तरफ महान हिन्दू-धर्म व संस्कृति के प्रतीक गुर्जर-प्रतिहार। अरबी धर्मांध योद्धा "अल्लाह हूँ अकबर” के उद्घोष के साथ युद्ध में आते तो मिहिर भोज की सेना "जय महादेव जय विष्णु, जय महाकाल" की ललकार के साथ टक्कर लेने और काटने को तैयार थी। हिन्दू योद्धा रात्रि में सोये हुए सेनिको पर आक्रमण को धर्म विरुद्ध मानते थे लेकिन मुस्लिम आक्रान्ता रात्रि के समय कभी भी हमला कर देते इस प्रकार के भयानक युद्ध अरबों व गुर्जर प्रतिहारों में निरन्तर चलते रहे। कभी रणक्षेत्र में भिनमाल, कभी हकड़ा नदी का किनारा, कभी भड़ौच व वल्लभी नगर तक अरबों के प्रहार हो जाते थे। कोई नगर क्षतिग्रस्त और कोई नगर ध्वस्त होता रहता था। जन धन की भारी हानि गुर्जर प्रतिहारो को युद्ध में उठानी पड़ी जिनका प्रभाव अगले युद्धों पर पड़ा। बारह वर्ष तक इन भयानक युद्धों में भिनमाल आदि अनेक प्रसिद्ध नगर बुरी तरह ध्वस्त व कई राजवंश नष्ट हो गए और कई की दशा बहुत बिगड़ गई परन्तु हिन्दू धर्म व संस्कृति के रक्षक वीरों ने हिम्मत नहीं हारी। कश्मीर का सम्राट शंकर वर्मन मिहिर भोज का मित्र था। मिहिर भोज के समय अरबों ने भारत में अपनी शक्ति बढ़ाने का खूब प्रयास किया लेकिन बहादुर हिन्दू सम्राट ने अरबों को कच्छ से भी निकाल भगाया जहाँ वे आगे बढ़ने लगे थे। इस वीर सम्राट ने अपने बाहुबल से खलीफा का अधिकार सिन्ध से भी हटा लिया। मिहिर भोज का राज्याधिकारी अलाखान काबुल हिन्दूशाही वंश के राजा लालिप को अरबों के होने वाले आक्रमणों के विरूद्ध निरन्तर सहायता देता रहा क्योंकि उस समय काबुल कन्धार भारतवर्ष के ही भाग थे।


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